Chhindwara News: गोटमार मेला: करीब 300 सालों से खेला जा रहा प्रेम का ये खूनी खेल - MP Khas Khabar

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Tuesday, September 07, 2021

Chhindwara News: गोटमार मेला: करीब 300 सालों से खेला जा रहा प्रेम का ये खूनी खेल

छिंदवाड़ा में खूनी गोटमार खेल का हुआ आयोजन, करीब 200 लोग घायल हुए।

छिंदवाड़ा, डेस्क रिपोर्ट। दुनिया में कई ऐसी परम्पराएं है जो बड़ी अजीबो-गरीब है। यह परम्पराएं किसी घटना या व्यक्ति आदि से जुड़ी हुई मानी जाती है। ऐसी ही एक अनोखी परम्परा पत्थर बाजी की। यह परम्परा महाराष्ट्र की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुरना तहसील में हर वर्ष भादो मास के कृष्ण पक्ष में अमावस्या पोला हिन्दू त्योहार के दूसरे दिन होती है। जिस दिन यह परम्परा निभाई जाती है उसे गोटमार मेला कहा जाता है। मराठी भाषा में गोटमार का अर्थ पत्थर मारना होता है। मराठी भाषा बोलने वाले नागरिकों इस क्षेत्र में रहते है, मेला आयोजन के दौरान पांढुरना और सावरगांव के बीच बहने वाली नदी के दोनों ओर बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं और सूर्योदय से सूर्यास्त तक पत्थर मारकर एक-दूसरे का लहू बहाते हैं। इस परम्परा के पीछे का राज जान कर चौंक जाएंगे। यह परम्परा ऐसे युवक-युवतियों की याद में निभाई जाती है जिन्होंने प्यार की खातिर अपने जान दे दी। प्रशासन की निगरानी में यह परम्परा निभाई जाती है। जिसमें काफी लोग हताहत होते हैं। स्थानीय निवासियों का मानना है कि सदियों पहले एक प्रेमी जोड़े ने प्यार की खातिर अपनी जान दे दी थी। उन्हीं की याद में गोटमार मेला आयोजित किया जाता है।

(Images Source: Social Media) 

क्या है गोटमार मेला?

पांढुर्ना और सांवरगांव के बीच में युवक-युवती की प्रेम कहानी की याद में हर साल गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पांढुर्ना गांव का एक युवक सांवरगांव की युवती को प्रेम विवाह करने के उद्देश्य से उठा ले गया था। गांव की बेटी को वापस लाने के लिए ग्रामीणों ने दोनों गांव के बीच में पथराव कर दिया। इस पथराव में दोनों युवक-युवती की मौत हो गई। प्रेम के लिए शहीद हुए इन युवक-युवती की याद में आस्था, विश्वास और अमर प्रेम कहानी का पर्व प्रतिवर्ष पोले के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए दोनों गांव के लोग आज भी जाम नदी में गोटमार (पत्थरवाजी) करते हैं।

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       (Images Source: Social Media)                                                                         

पलाश वृक्ष को काटकर जाम नदी के बीच गाड़ते है उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। फिर सुरु होता है खुनी खेल- इस झंडे को दोनों ओर से चल रहे पत्थरों के बीच उखाड़ना रहता है। जिस गांव के लोग झंडा उखाड़ लेते हैं वह विजयी माने जाते हैं। नदी के बीच से झंडा उखाड़ने के बाद इसे चंडी माता के मंदिर में ले जाया जाता है।


 (Images Source: Social Media) 

गोटमार बंद करने के प्रयास विफल-

मानव अधिकार आयोग की सिफारिशों पर जिला प्रशासन 2009 से कई बार इस खूनी मेले में पत्थरबाजी बंद करने के प्रयास कर चुका है, परन्तु सफलता नहीं मिल सकी। इस खूनी खेल में हर वर्ष करीब 400 लोग घायल होते हैं। 

     (Images Credit: Social Media) 


इस आयोजन में पूर्व में अनेक की मौत भी हो चुकी है। फिर भी इस मेले की परम्परा कायम है। प्रशासन नतमस्तक है, पिछले वर्ष कोरोना के कहर के बावजूद भी इस खूनी खेल का आयोजन हुआ था और इस बार भी पुराने स्वरूप में स्थानीय लोग इस रस्म अदायगी को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध थे। कलेक्टर छिंदवाड़ा ने धारा 144 के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए थे। बावजूद इस मेले का आयोजन हुआ।

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