आइए जानते हैं कि हिन्दी के बारे में हमारे महापुरुषों के क्या थे विचार-
1. बाल गंगाधर तिलक जी ने कहा-
“मैं उन लोगों में से हूं,जो चाहते हैं और जिनका विचार है कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है।“
2. सुभाष चन्द्र बोस ने कहा-
"हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।"
3. मैथिलीशरण गुप्त जी का कहना था-
“है भव्य भारत, हमारी मातृभूमि हरी भरी,हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी”
4. चन्द्रबली पाण्डेय जी ने कहा-
"हिन्दी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।"
5. हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने कहा-
‘हिन्दी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं”
6. विनोबा भावे जी ने कहा-
"हिन्दी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा"
7. पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा-
“हिन्दी एक जानदार भाषा है। वह जितनी बढ़ेगी देश का उतना ही नाम होगा।“
8. वर्ष 1806 ई.में एसी.टी.मेटकॉफ़ ने अपने शिक्षा गुरु जॉन गिलक्राइस्ट को लिखा-
'भारत के जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है, कलकत्ता से लेकर लाहौर तक,कुमाऊं के पहाड़ों से लेकर नर्मदा नदी तक मैंने उस भाषा का आम व्यवहार देखा है,जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है। मैं कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूं कि मुझे हर जगह ऐसे लोग मिल जाएंगे जो हिन्दुस्तानी बोल लेते होंगे।'
9. वर्ष 1807 ई.में टॉमस रोबक ने लिखा-
'जैसे इंग्लैण्ड जाने वाले को लैटिन सेक्सन या फ़्रेंच के बदले अंग्रेजी सीखनी चाहिए,वैसे ही भारत आने वाले को अरबी-फारसी या संस्कृत के बदले हिन्दुस्तानी सीखनी चाहिए।'
10. वर्ष 1816 ई. में विलियमकेरी ने लिखा-
'हिन्दी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है।